आकांक्षा: द डेविल्स एंजेल - 8
लाइब्रेरी से लाई हुई किताबों को जब आकांक्षा ने छुआ, तो उसे फिर से कुछ दृश्य दिखाई देने लगे। उसने झटके से उस किताब को खुद से दूर कर दिया।
" दादू के सामने मुझे इन किताबों से दूर रहना होगा। अगर मैंने इन विजुअल्स देखते टाइम गलती से कुछ बोल दिया तो उन्हें पता ना चल जाए कि मैं किसी का पास्ट देख सकती हूं।" आकांक्षा ने राजवीर जी की तरफ देखकर सोचा, जो उस समय टीवी देखने मे व्यस्त थे।
उसने दोनो किताबो को अपने कमरे मे बाकी किताबो के साथ रख दिया।
रात को डिनर के बाद आकांक्षा के साथ अपने के कमरे मे बैठकर वो किताबें पढ़ रही थी।
जानवी ने उन किताबों की तरफ देखकर बोला,"पता नही किस घड़ी में मैने तुझे अपना दोस्त बनाया था और कौनसे जन्म का बदला ले रही है तु मुझसे, ये बोरिंग किताबें पढ़वा कर।"
"हे भगवान! एक तो इस लड़की की नौटंकी खत्म नही होती। चुप कर के पढ़ नही सकती क्या?" आकांक्षा ने आँखे तरेरकर कहा।
जानवी ने किताब खोलकर जोर जोर से पढ़नी शुरू कर दी, "क्या पढ़ूँ इसमे.... एक रियासत थी... जहाँ पर कभी कोई तो कभी कोई शासन करता था। कभी कोई विक्रम प्रताप सिंह था, तो कभी कोई जय प्रताप सिंह ..... राजतंत्र था तो राजा का बेटा ही नया राजा बनता था। कुछ नहीं लिखा इन सबके अलावा.... पता नहीं किसने लिखी होगी यह बोरिंग किताब। लिखते लिखते नींद नहीं आई क्या उसे।" जानवी ने किताब को बंद कर के साइड में रख दिया।
"चल इसे छोड़ .... यह वाली पढ़ते हैं।" आकांक्षा ने किताब का शीर्षक पढा, "बिलासपुर और कुछ किवदंतीयां"
"तू पढ़..... मैं सुन रही हूं।" जानवी ने उबासी से लेकर कहा।
"मुझे पता है कि तू सो जाएगी। इसलिए तू पढ़ और मैं सुन रही हूं।" कहकर आकांक्षा ने वह किताब जबरदस्ती जानवी के हाथ पर रख दी। अब जानवी के पास उस किताब को पढ़ने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
"अच्छा पूरी बुक को रहने देते हैं.... सिर्फ राजकुमार रीवांश से जुड़ी हुई किंवदंती को पढ़ते हैं।"
आकांक्षा ने अपना चश्मा उतार कर साइड मे रख दिया और बोला, "हां तो पढ़... तू कितने भी बहाने बना ले, ये किताब तो मैं तुझ ही से पढ़वाऊंगी।"
जानवी ने किताब पढ़नी शुरू की, "वैसे तो बिलासपुर में कई किवदंतीया फैली हुई थी.... लेकिन जो सबसे प्रचलित थी, वो थी सन 1850 से जुड़ी हुई घटना। सन 1850 में बिलासपुर में काले जादू का बहुत बोलबाला था। सभी लोग शक्ति और सत्ता के लालच में काले जादू को सीखते और उसका प्रयोग करते थे। इन्हीं में चार नौजवान दोस्त थे.... जो बिलासपुर के श्मशान में तंत्र विद्या का प्रयोग करते थे। वह चारों भी शक्तिशाली बनना चाहते थे। लेकिन उन चारों में से किसी के भी ग्रह नक्षत्र इतने शक्तिशाली नहीं थे कि वह एक बड़ी पूजा को अंजाम दे सके। उन चारों ने अपने बुरे कामों को अंजाम देने के लिए राज्य के अगले उत्तराधिकारी राजकुमार रीवांश को चुना। पूरे बिलासपुर में राजकुमार रीवांश के बारे में सबको पता था कि उनका जन्म एक विशेष मुहूर्त में हुआ था। जिसके अनुसार उनके द्वारा किया हुआ हर कार्य सफल ही सिद्ध होगा। लेकिन राजकुमार रीवांश को किसी कारणवश विलायत पढ़ने भेज दिया गया था।"
आकांक्षा ने उसकी बात को बीच मे बोला, "मतलब उस समय में भी लोग बाहर पढ़ने जाते थे?"
जानवी ने जवाब दिया, "हां क्योंकि तब तक ब्रिटिश सत्ता भारत में स्थापित हो चुकी थी। तो शायद अंग्रेजी भाषा भी अपने इंडिया में आ गई होगी। वैसे भी तूने सुना नहीं क्या ज्यादातर राजा लोग थे, वो अंग्रेजों के गुलाम ही थे।"
आकांक्षा ने वापिस चश्मा लगाते हुए कहा, "ये बुक इधर दे, आगे मैं पढ़ती हूं...!" आकांक्षा ने आगे पढ़ना शुरू किया, "राजकुमार रीवांश अपनी पढ़ाई को पूरी करके विदेश से वापस लौट रहे थे। उस दिन पूर्णिमा की रात थी.... भले ही रात को आसमान में चांद पूरा था,,,,, लेकिन उस रात चांद पर ग्रहण लगने वाला था। काली शक्तियाँ अपनी चरम पर थी। उसी वक्त को उन चारों ने अपने काले कारनामों को अंजाम देने के लिए चुना। महल लौटते वक्त रास्ते में घना जंगल था। जिसमें उन पांचों ने वह रात बिताई थी। कहते हैं उस रात स्वयं शैतान जागृत हुआ था और उन पांचों को अद्भुत शक्तियां प्राप्त हुई थी। कुछ लोगों का मानना है कि राजकुमार रीवांश अपने दोस्तों के भ्रम जाल में आकर उनकी कुनीतियों का शिकार हो गए। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि राजकुमार रीवांश ने शक्तियां हासिल करने के लिए स्वयं वह पूजा की थी। उस रात के बाद वह जंगल शापित हो गया। शैतान की परछाई ने पूरे जंगल को अपने आगोश मे ले लिया। वहां चारों तरफ अंधेरा छा गया। उस रात के बाद सूरज की रोशनी भी उस जंगल को छू नहीं सकती।" आकांक्षा ने राजकुमार रीवांश से जुड़ी हुई बातें पढ़ कर उसके बारे मे सोचने लगी।
तभी जानवी ने हैरानी से आँखे बड़ी कर के कहा, "क्या सच में वह राजकुमार अपने दोस्तों की बातों में आ गया था या फिर उसे खुद को शक्तियां चाहिए थी?"
आकांक्षा ने हंसकर जवाब दिया, "तू तो मुझे ऐसे पूछ रही है, जैसे उस रात उन पांचों के साथ मैं भी उस जंगल में मौजूद थी। आगे पढ़ने दे मुझे....!" वो उसे फिर से पढ़ते हुए बोली, "उस भयानक रात के बाद बिलासपुर में एक के बाद एक मौतें होने लगी। जो भी उस जंगल में जाता.... लौट कर कभी भी वापस नहीं आता। कहते हैं उस रात के बाद उस जंगल में भी पिशाचों का डेरा है।"
"अक्षु वैसे उस जंगल का एग्जैक्ट लोकेशन क्या है?" जानवी ने किताब में बने एक छोटे से नक्शे को देख कर कहा।
आकांक्षा– "अगर इस मैप के हिसाब से जाएं, तो वह जंगल हमारे शिमला के पास वाला जंगल ही है। यहां से लगभग 1 घंटे दूर... इसका एक कोना शहर की आबादी की तरफ भी लगता है।"
"थैंक गॉड..! ये जंगल यहाँ से 1 घंटे दूर है। मैं तो उस तरफ कभी ना जाऊं।" जानवी ने हाथ जोड़े।
"क्यों ना हम वहां पर जाए और जाकर सच्चाई का पता लगाएं।" आकांक्षा के कहते ही जानवी ने उसे समझाया, "देख बहन, ये सच्चाई-सच्चाई वाला गेम किताबों तक ही ठीक है। देखा नहीं कैसे लोगों की लाशें मिल रही है, उस जंगल के पास से, ना तो मैं जाऊंगी और ना ही तुझे जाने दूँगी। रात के 12:00 बज रहे हैं। अब चुपचाप सो जा।"
आकांक्षा ने मुँह बनाकर जवाब दिया, "अच्छा ठीक है सो जाऊंगी .... और वैसे भी किताबें भी तो जमा करवानी है। कल ही इन्हे वापिस कर देंगे। और कल से तो रेगुलर कॉलेज भी जाना पड़ेगा।"
"हां कॉलेज भी जाएंगे .... लाइब्रेरी भी जाएंगे.... फिर कैफे भी जाएंगे .... और तो और इवनिंग वॉक के लिए पार्क भी जाएंगे। सब जगह चलेंगे.... लेकिन उस जंगल में कभी नहीं।"
आकांक्षा ने चश्मा उतारकर रखते हुए कहा, "अच्छा ठीक है मेरी माँ.... अब जाकर लाइट्स तो ऑफ कर दे।"
जानवी– " मुझसे नहीं उठा जाता.... आंखें बंद कर ले। अपने आप अंधेरा हो जाएगा।"
"पता नहीं क्या होगा इस लड़की का.... सारा काम मुझे ही करना पड़ता है।" आकांक्षा ने उठकर कमरे की लाइटस बंद की और जानवी के पास बेड पर आकर सो गए।
रात के 12.30 बज रहे थे। जानवी और आकांक्षा दोनो गहरी नींद मे सोई थी। आकांक्षा को फिर से वही अजीब खौफनाक सपने आने लगे, जिन्हे देखकर वो नींद मे बड़बड़ा रही थी, "ये कहाँ आ गयी हूँ मै... जानवी कहाँ है तु? मुझे अकेले ही भेज दिया यहाँ.... कोई है? कहां पर आ गई मैं? कुछ समझ नहीं आ रहा... कहां जाऊं... इतना इतना अंधेरा क्यों है यार? देखती हूं आगे चलकर की कहीं कुछ दिखे तो....!"
आकांक्षा को लगा कि वो सपना देख रही है, लेकिन उसे पता ही नहीं चला कि कब वह नींद में जंगल में पहुंच गयी। जंगल के एक हिस्से में जादुई पिंजरे में वह चारों पिशाच (रवि,रघु संजय और विजय) कैद थे। जबकि रात के अंधेरे में बाकी पिशाच अपने शिकार की तलाश में जंगल में इधर से उधर घूम रहे थे।
जिस जंगल में इतने सालों से घनघोर अंधेरा था, वहां आकांक्षा के कदम रखते ही उसके चारों तरफ उसकी शक्तियों से एक रोशनी का एक घेरा बन गया। भले ही आकांक्षा अपनी शक्तियों से अनजान थी. ...लेकिन कुदरत की वह अद्भुत शक्तियां हमेशा उसकी रक्षा करती थी।
आकांक्षा की शक्तियों का घेरा को देख पाना या महसूस कर पाना किसी आम इंसान के बस में नहीं था। जंगल में इतने सारे पिशाच होने के बावजूद किसी की भी नजर उस रोशनी पर नही पड़ी। अक्सर पिशाच किसी इंसान की खुशबू सुंघकर चुटकियों में उनके पास आ जाते थे, लेकिन आकांक्षा जंगल में इधर-उधर घूम रही थी, उसके बावजूद किसी को उसकी महक नही आई।
रीवांश जंगल मे मौजूद एक झील के पास बैठा था। वहां बैठे हुए उसकी नजर झील पर पड़ी। इतने सालों में पहली बार आज झील का पानी बिल्कुल साफ और शुद्ध था। वो उसकी तरफ हैरानी से देख रहा था कि उसकी नजर जंगल के किसी कोने से आ रही रोशनी की तरफ गई।
"यह अचानक से इस जंगल के अंधेरे में रोशनी कहां से आ रही है। जिस जंगल में शैतान की शक्तियों की वजह से कभी भी रोशनी की एक किरण तक नहीं पहुंचती, ,,,वहां आज यह अद्भुत रोशनी कहां से आ रही है?" रीवांश उस रोशनी को ढूंढते हुए अगले ही पल आकांक्षा के सामने खड़ा था। उसके आस पास रोशनी का सुरक्षा चक्र देखकर वो समझ गया कि वो कोई आम इंसान नही थी।
"इस शैतानी दुनिया में आप क्या कर रही हो?" रीवांश सोचते हुए उसके करीब गया।
आकांक्षा कुछ समझ पाती, उस से पहले वो चकरा कर रीवांश की बाहों मे गिर गयी।
★★★★
सुबह के सात रही थे। अलार्म की आवाज सुनकर जानवी नींद में बड़बड़ाई, "अक्षु..! अलार्म बन्द कर ना..!"
काफी देर तक कोई जवाब नहीं आने पर जानवी ने उठकर अलार्म बंद किया। जानवी का ध्यान बिस्तर पर गया, जहां पर आकांक्षा मौजूद नहीं थी और उनके कमरे का दरवाजा भी खुला था।
"ये अक्षु की बच्ची, आज जल्दी कैसे उठ गई? रात को तो हम इतना लेट सोए थे।" वो बेड से उठकर चिल्लाते हुए बाहर आई, "अक्षु ...... अक्षु .... कहां है यार तू? इतनी सुबह सुबह उठ गई और मुझे जगाया तक नही।"
जानवी की बातों का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बाहर देखा तो वहां पर कोई मौजूद नहीं था।
" यहां पर तो कोई नहीं है। हो सकता है कि अक्षु दद्दू के साथ मॉर्निंग वॉक पर गई होगी। ऐसा करती हूं कि मै तैयार हो जाती हूं। जब तक वो लोग आते हैं, तब तक ब्रेकफास्ट भी बनाकर तैयार कर लेती हूँ। ब्रेकफास्ट रेडी होगा , तो अक्षु को भी तैयार होने में ज्यादा टाइम नहीं लगेगा। कॉलेज भी तो पहुंचना है। ये लड़की भी ना.. कई बार हद करती है।"
जानवी जल्दी से रेडी होकर ब्रेकफास्ट बनाने लगी। लगभग 8.30 बजे के करीब राजवीर जी हमेशा की तरह मॉर्निंग वॉक से वापिस आए।
राजवीर जी ने जानवी को डाइनिंग टेबल के पास देखा, तो वहाँ जाकर बोले, "गुड मॉर्निंग जानवी बेटा......आज तो सुबह-सुबह आप लोग उठ भी गए और ब्रेकफास्ट भी बना लिया।"
जानवी ने मुँह बनाकर जवाब दिया, "आप लोग कहां दद्दू ? कब से मैं अकेले लगी हुई हूं। एक तो इस अक्षु की बच्ची ने मुझे जगाया भी नहीं और आप दोनों अकेले ही मॉर्निंग वॉक पर क्यों गए? मुझे भी तो लेकर जाना चाहिए था ना.... माना कि वॉक करने में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है। लेकिन सुबह सुबह वहां जाकर कुछ फोटोज ही क्लिक कर लेती।"
" यह तुम क्या बोल रही हो जानवी? अक्षु मेरे साथ नहीं गई थी। रात को भी तो तुम दोनों साथ ही थी। ऊपर से तुम दोनों रात को दरवाजा बंद करके नहीं सोई थी। घर में कोई चोर घुस जाता तो ... या कोई भी जंगली जानवर आ सकता है। कितने लापरवाह हो गए हो तुम आजकल के बच्चे।" राजवीर जी ने नाराजगी जताते हुए कहा।
उनकी बात सुनकर जानवी घबरा गयी।
"आप मजाक कर रहे हो क्या सुबह-सुबह? अक्षु तो घर में कहीं पर भी नहीं है। मुझे लगा वह आपके साथ मॉर्निंग वॉक पर गई होगी।"
"यह तुम क्या बोल रही हो? अक्षु घर पर नहीं है? वो मेरे साथ मॉर्निंग वॉक पर नही गयी थी। सुबह भी जब मै उठा, तो मैन गेट खुला था।" राजवीर जी बुरी तरह परेशान हो गए।
राजवीर जी और जानवी ने पूरे घर में आकांक्षा को छान मारा। लेकिन वह कहीं नहीं मिली। आकांक्षा के ना मिलने से राजवीर जी परेशान हो गए। पहले ही उन्होंने अपने बेटे बहू को खो दिया था। अब उनका एकमात्र सहारा आकांक्षा ही थी।
राजवीर जी ने रोते हुए कहा, "पता नहीं मेरी बच्ची कहां चली गई होगी?"
"अरे दद्दू आप परेशान मत होइए। हो सकता है कि कहीं पड़ोस में गई होगी.... मैं उसे फोन करके देखती हूं। आप तब तक यह पानी पीजिए।" जानवी ने उन्हें पानी का ग्लास पकड़ाया और दिलासा दिया।
जानवी ने आकांक्षा को कॉल किया, तो उसका मोबाइल घर पर ही बज रहा था।
"चलिए आस पास जाकर देखते है। वह कहीं नहीं गई, यहीं कहीं होंगी।" जानवी राजवीर जी को संभालने की पूरी कोशिश कर रही थी।
जानवी और राजवीर जी आकांक्षा को आस पास के उन सभी हिस्सों मे ढूंढने लगे, जहाँ वो जा सकती थी। लेकिन उन्हे वो कही नही मिलती।
राजवीर जी ने जानवी से बोला,"हमे पुलिस स्टेशन चलना चाहिए। मैं अपने बच्चे को लेकर किसी भी तरह का रिस्क नहीं ले सकता।"
"हाँ दद्दू..!' कहकर जानवी राजवीर जी के साथ कार में बैठ गई। उसने अभी तक राजवीर जी को किताबों से जुड़ी कोई बात नहीं बताई थी, लेकिन उसके मन में उसी से जुड़ी बातें चल रही थी, "कही अक्षु उस रिवांश के सच का पता लगाने जंगल तो नही चली गयी। हे भगवान! सब ठीक हो। ददू को इन सब के बारे में पता चलेगा, तो वह भी गुस्सा हो जाएंगे। एक बार उन्हें इस बारे में कुछ नहीं बताती हूं। जब अक्षु आ जाएगी, तब दोनों मिलकर बात कर लेंगे।"
★★★★★
सुबह के 9 बज रहे थे। जंगल मे अभी तक घनघोर अंधेरा था।
आकांक्षा अभी भी रीवांश की गोद मे बेहोश पड़ी थी और रिवांश बस अपलक उसे ही देख रहा था।
रीवांश ने अक्षु के बालों मे हाथ फिराते हुए कहा, "होश मे आइये।" रीवांश के जादू का उस पर कोई असर नही पड़ा। उसने हैरानी से कहा, "इन पर हमारा जादू काम क्यों नही कर रहा है?"
रीवांश खुद से बात कर रहा था कि तभी उसकी नजर आकांक्षा की तरफ गई, जो कि धीरे-धीरे अपनी आंखें खोल रही थी।
अक्षु ने अंगड़ाई लेकर बोला, "जानवी की बच्ची... जा मेरे लिए चाय लेकर आ..!" आकांक्षा अपना सिर पकड़कर उसने की कोशिश करने लगी, "ये मेरे सिर मे इतना दर्द क्यों हो रहा है?"
रीवांश ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "आपको होश आ गया.! "
उसकी आवाज सुनकर आकांक्षा की नजर रीवांश पर गई, तो उसने देखा कि वह उस की गोद में लेटी पड़ी थी।
आकांक्षा ने जल्दी से रीवांश की गोद से उठते हुए बोला,"कौन हो तुम? मै यहाँ कैसे? और यहाँ इतना अंधेरा क्यों है? यार मेरा चश्मा कहाँ है,,,, एक तो कुछ साफ दिख भी नही रहा।"
रीवांश ने जवाब मे कहा, "आप यहाँ जंगल मैं क्या कर रही है? यह इलाका सुरक्षित नहीं है।"
आकांक्षा ने घबराकर इधर उधर देखा। वहां चारों तरफ अंधेरा था लेकिन पास पड़ी धूल–मिट्टी और पेड़ों की महक से पता लगाया जा सकता था कि वह शहरी इलाके में अपने घर पर नहीं है।
"क्या .....जंगल.....मैं यहां जंगल में क्या कर रही हूं? जानवी कहां है? तुमने मुझे किडनैप तो नही किया ना?"
"यहां आपके और मेरे अलावा और कोई नहीं है।" रीवांश ने कहा।
"तुम कौन हो.... और क्या कर रहे हो यहां पर? पहले एक बात बताओ, यहां पर इतना अंधेरा क्यों है ? अभी सुबह हुई नहीं क्या?" आकांक्षा ने इधर उधर देख कर पूछा।
"हम रीवांश हैं।" उसने जवाब दिया।
उसका नाम सुनकर आकांक्षा ने आंखें बड़ी करके कहा, "क्या.... तुम राजकुमार रीवांश हो क्या? बिलासपुर वाला... जो विदेश से पढ़कर वापस आ रहा था।"
आकांक्षा के मुँह से अपनी सारी जानकारी सुनकर वो दंग रह गया। उसकी बात सुनकर रीवांश सोच मे पड़ गया, "ये हमारे बारे में कैसे जानती है? इन्हे कैसे पता हम बिलासपुर के राजकुमार थे और विलायत पढ़ने गए थे।"
"अरे बोलो कुछ? कहाँ खो गए? हे भगवान! पता नहीं कहां फंस गई मैं?"
रीवांश ने खुद को संभाला और कहा, "आप क्या बोल रही हो ... हमें कुछ समझ नहीं आ रहा। हम भी आप ही की तरह इस जंगल में फंस गए हैं।"
"थैंक गॉड..! कोई तो साथ मिला, जो इस जंगल में मेरी तरह फंस गया है। चलो दोनों मिलकर रास्ता ढूंढते हैं। माना कि अभी अंधेरा है... लेकिन जब सुबह होगी तो सूरज की रोशनी चारों तरफ फैल जाएगी और रास्ता ढूंढने में आसानी होगी।" उसे देखकर आकांक्षा में थोड़ी हिम्मत आ गयी। वो वहाँ से खड़ी हुई और चलने लगी। रीवांश भी धीरे धीरे चलकर उसके पीछे आ रहा था।
" पता नहीं हमने आपसे झूठ क्यों बोला .... लेकिन कैसे कहें आपसे कि इस जंगल में कभी भी सवेरा नहीं होगा। लेकिन आप इस जंगल में कैसे आ गई? ये जगह आपके लिए ठीक नही है। पहली बार शिकार सामने होते हुए भी, उसे मारने का मन नही कर रहा। हम पूरी कोशिश करेंगे, आपको यहां से सुरक्षित बाहर भेज दे। कितनी मासूम है आप..बिल्कुल किसी छोटे बच्चे की तरह..!" रीवांश आकांक्षा की तरफ देखकर सोच रहा था, जो कि अंधेरे मे भी रास्ता तलाशने की कोशिश कर रही थी।
क्रमशः....
#कहानी
#वेबसीरीज
#उपन्यास
#धारावाहिक
🤫
22-Dec-2021 10:58 AM
बहुत अच्छी कहानी है आपकी ma'am
Reply
Jahnavi Sharma
22-Dec-2021 11:39 AM
Thanks 😇😇
Reply
Arshi khan
21-Dec-2021 11:18 PM
Baki sab to theek h maim lekin ye # samjh nahi aya..🤔🤔
Reply
Jahnavi Sharma
22-Dec-2021 08:10 AM
Ye last me ase hi lga deti hun..! Kahani se related nhi hai.
Reply